भारत की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। ग्रामीण आबादी में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। यह माना जाता है कि देश का 50 प्रतिशत युवा गांवों में निवास करता है। गांवों में आमदनी का जरिया केवल खेती-किसानी ही होती है। जब बेटा घर में जवान हो जाता है तो उसकी तमाम जरूरतें बढ़ जातीं हैं। एक घर में यदि कई बेटे हैं और खेती का रकबा कम है तो उनके समक्ष गरीबी व भुखमरी की नौबत आ जाती है। ऐसी स्थिति में उस युवा को घर छोड़ कर परदेश कमाने के सिवा कोई रास्ता नहीं होता है। लेकिन इन गांव देहात के युवाओं का दुर्भाग्य यह होता है कि वे पढ़े लिखे नहीं होते हैं या कम पढ़े लिखे होते हैं। गांव की पढ़ाई ऐसी होती है, जिससे अच्छी नौकरी पायी जा सकती हो। इसका नतीजा यह होता है कि गांव घर छोड़ कर परदेश जा कर कमाई करने वाला एक युवा एक अकुशल श्रमिक की तरह काम करता है। उसे बहुत कम पगार पर बहुत अधिक काम करना होता है। किसी खास तरह के हुनर न होने के कारण उसका शोषण भी बहुत होता है क्योंकि उस तरह के युवाओं की कमी नहीं होती है। यदि कोई युवा किसी काम को 10 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी में करता है तो उसके पीछे 8 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी पर काम करने वाला दूसरा युवा तैयार खड़ा होता है। इसके चलते इन ग्रामीण युवाओं का काफी शोषण होता है। उस समय इनके मन में यही विचार आता है कि इससे तो अच्छा गांव में कोई छोटा-मोटा काम कर लेते तो अच्छा रहता।
क्या है गांवों की त्रासदी?
गांवों में युवाओं के साथ एक यह भी त्रासदी होती है कि वो यह विचार ही नहीं कर पाते हैं कि वे खेती किसानी के अलावा और कौन से काम करके अपनी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। वह आर्थिक तंगी से गुजरते रहते हैं और उसे ही अपना भाग्य समझते रहते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। इसके अलावा गांवों के अनेक युवाओं के समक्ष ऐसी समस्याएं होतीं हैं जिसके कारण वो गांव नहीं छोड़ सकते हैं, जैसे बूढ़े माता-पिता, छोटे-भाई बहनों की देखरेख की जिम्मेदारी आदि कारण होते हैं। इस तरह का युवा मजबूरी में गांव में ही आर्थिक तंगी का सामना करता रहता हैं।
ये हैं अनेक संभावनाएं
ऐसा नहीं है कि गांवों में किसी तरह के छोटे-मोटे लाभकारी बिजनेस की संभावनाएं हैं ही नहीं। बस केवल आपको उनकी ओर नजर दौड़ाने की जरूरत है। गांवों में खेती-किसानी से जुड़े और उससे अलग हटकर ऐसे अनेक बिजनेस हैं जिनको शुरू करके घर बैठे अच्छी कमाई की जा सकती है। ऐसे कौन-कौन से बिजनेस हो सकते हैं? गांव में रहकर आसान, कम पूंजी में अधिक आमदनी करने वाले कुछ बिजनेस इस प्रकार हैं:-
1. फसल व सब्जी ढोने का काम यानी लोकल ट्रांसपोर्ट का बिजनेस
2. खाद और बीज गोदाम का बिजनेस
3. कृषि यंत्रों की मरम्मत, वेल्डिंग व फैब्रिकेशन का काम
4. डेयरी उद्योग
5. पशुपालन
6. टेलरिंग
7. खुदरा दुकान का बिजनेस
8. मोबाइल रिपेयरिंग व रिचार्ज
9. साइकिल व मोटर साइकिल रिपेयरिंग का बिजनेस
1. फसल व सब्जी ढोने का काम यानी लोकल ट्रांसपोर्ट का बिजनेस
आम तौर पर खेतों से तीन फसलें ली जातीं हैं। इन फसलों को मंडी तक ले जाना होता है। इसके अलावा अब नकदी फसलों का भी तेजी से चलन बढ़ गया हैं। सब्जी व फल की खेती को नकदी फसल कहते हैं। नकदी फसलों के लिए तो रोजाना मंडी व शहर का आना-जाना होता है। इसके साथ गांव में कई ऐसी चीजों की जरूरत होती है जिनको बाजार से रोजाना ही लाना होती है। जैसे गांव में खुली अनेक खुदरा सामान की दुकानों के दुकानदारों के लिए रोजाना जरूरत की चीजें भी बाजार से गांव तक आती हैं। इसके अलावा ग्रामीणों को गांव से बाजार, कोर्ट, कचहरी व अन्य काम से पास के कस्बे व शहर में आने-जाने का काम भी होता है।
कहने का मतलब यह है कि गांव से माल ढोने और यात्रियों को ढोने के लिए ट्रांसपोर्ट का बिजनेस लाभकारी साबित हो सकता है। कोई भी युवा यह काम करेगा तो उसे रोजाना अच्छी आमदनी हो सकती है। इस काम को शुरुआत करने के लिए सरकार की प्रोत्साहन योजना का लाभ उठाना चाहिये। इससे बिजनेस शुरू करने की लागत कम आयेगी और मुनाफा भी काफी अच्छा मिलेगा। अब यदि कहा जाये कि इस काम में मेहनत बहुत है तो पैसे कमाने के लिए कोई भी बिजनेस करने मेहनत करनी पड़ती है। इस बिजनेस की एक अच्छी बात यह है कि इस बिजनेस में घाटा होने की संभावना बहुत कम है तथा सदाबहार बिजनेस है। इस बिजनेस के बारे में कहा जाता है कि जब तक पहिया घूमता है तब तक रुपया यानी पैसा आता रहता है।
2. खाद और बीज गोदाम का बिजनेस
गांव में रहकर युवाओं द्वारा बीज और खाद का गोदाम खोलने का बिजनेस बहुत अच्छा बिजनेस है। अब खेती किसानी पहले जैसी नहीं रह गयी है कि साल में तीन फसलें मुश्किल से होतीं थीं । कोई कोई किसान तो दो ही फसल लेकर फुर्सत पा लेता था। साथ ही पहले ऐसा होता था कि एक एरिया में एक ही तरह की फसल होती थी। यदि किसी खास एरिया में गेहूं की फसल होती थी तो पूरे एरिया के किसान केवल गेहूं ही पैदा करते थे, उसमें सब्जी, फल या दलहन की फसल कोई नहीं लेता था। आज जमाना बदल गया है। प्रत्येक गांव में तरह-तरह की खेती होती है। कुछ किसान यदि गेहूं,दलहन की ठोस फसल की खेती करते हैं तो कुछ नकदी फसल की खेती करते हैं। कहने का मतलब यह है कि बदले जमाने में किसान ने खेती में भी तरक्की की है और साल में चार-चार फसलें ली जातीं हैं। इन फसलों में जहां अनाज, दलहन तो पैदा किये जाते हीं हैं। वहीं फल, सब्जी के साथ फूल की भी खेती की जाने लगी है।
इन सब बातों का मतलब यह है कि आज की खेती में तमाम तरह की फसलों के उगाने के प्रचलन के कारण बीज और खाद की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। यदि ऐसी दशा में खेती में अनुभवी युवा यदि बीज और खाद का गोदाम खोलता है तो उसे काफी अच्छी आमदनी हो सकती है। यह बिजनेस सदाबहार बिजनेस है और इस बिजनेस को सदाबहार बनाने के लिए बिजनेसमैन युवा को नये-नये बीजों के बारे में किसानों को जानकारी देनी होगी।
3. कृषि यंत्रों की मरम्मत, वेल्डिंग तथा फेब्रिकेशन का काम
आजकल खेती किसानी पुराने जमाने की तरह नहीं रह गयी जब सारी खेती बैलों और हल तथा पाटा से ही हो जाया करती थी। बाद बाकी सारे काम किसान को खुद अपने हाथों से करने पड़ते थे। आजकल गांव का युवा गांव में खेती किसानी के काम करने की जगह शहर मे जाकर कोई सा भी काम करना पसंद करता है। इसलिये गांवों में युवाओं और सस्ते श्रम की कमी हो गयी है। जो लोग गांव में रह रहे हैं वो भी खेती किसानी के मेहनत वाले काम नहीं करना चाहते हैं। इसलिये इसका विकल्प यही निकाला गया है कि जितना अधिक से अधिक मशीनों से काम करके खेती को आधुनिक बनाया जाये। इसके अलावा अब पुरानी परंपरागत खेती की अपेक्षा आधुनिक खेती में मशीनों की बहुत भारी डिमांड है क्योंकि अब तरह-तरह के प्रोडक्ट को तैयार कने वाली खेती होती है। इसमें अनेक तरह के कृषि यंत्रों का इस्तेमाल होता है।
जहां पहले बैलों से खेती होती थी ,उसकी जगह ट्रैक्टर ने ले ली है। ट्रैक्टर और ट्रॉली ने किसान को अनेक तरह के काम दे दिये हैं। इसके अलावा कृषि के काम आने वाले यंत्रों में पॉवर वीडर, हैप्पी सीडर, डिबलर, तवेदार हैरो, जीरो टिल सीड, कल्टीवेटर, मिट्टी पलटने वाला हल यानी मोर्ल्ड बोर्ड, ट्रैक्टर, रोटा वेटर जिसे रोटरी टिलर भी कहते हैं, आदि हैं। इसके अलावा कई अन्य छोटे-मोटे यंत्र भी खेती के काम आते हैं। इन यंत्रों की उस देखभाल और रखरखाव में लापरवाही व आलस्य के कारण इन यंत्रों में मिट्टी व पानी से जंग आदि लगने के कारण या व्यवसायिक तरीके से अधिक इस्तेमाल होने के कारण खराबी आने लगती है, उसके लिए किसानों को शहर भागना पड़ता है। वहां इनको सुधारने वालों के पास कृषि यंत्रों की रेलमपेल रहती है। किसान को अपने कृषि यंत्रों को ठीक कराने के लिए इंतजार तो करना ही पड़ता है। साथ ही बार-बार गांव से शहर के चक्कर भी लगाने पड़ते हैं। इसलिये गांवों में इस बिजनेस का काफी अच्छा स्कोप है। थोड़ी से ट्रेनिंग करके मशीनो आदि की व्यवस्था करके यह काम करना युवाओं के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकता है।
कृषि यंत्र की मरम्मत से जुड़ा वेल्डिंग व फैब्रिकेशन आदि का काम भी किया जा सकता है। इससे युवाओं को अधिक रोजगार मिलेगा और उनकी शॉप या उनकी डिमांड गांवों में और अधिक बढ़ जायेगी। काम और डिमांड बढ़ने से आमदनी का बढ़ना स्वाभाविक है।
4. डेयरी उद्योग
डेयरी उद्योग यानी दूध-दही, घी-पनीर आदि का व्यापार। ये काम गांव से आसानी से किया जा सकता है। गांव से 20-25 किमी की दूरी पर कस्बा व शहर होता है। कस्बे, शहर डेयरी प्रोडक्ट की भारी मांग रहती है, गांव की अपेक्षा इन जगहों पर डेयरी प्रोडक्ट के पैसे भी अच्छे मिलते हैं। ये काम भले ही थोड़ा मेहनत-मशक्कत वाला है लेकिन ये काम सदाबहार है और इसमें अच्छा खासा मुनाफा भी मिलता है। इस काम में पैसे भी अधिक नहीं लगाने पड़ते हैं। गांव में रहने वाले युवा की गांव में इतनी तो साख होती ही है कि वहां के लोग अपनी गाय-भैंस का दूध उसे आसानी से दे सकते हैं और बिकने के बाद उससे पैसे ले सकते हैं। युवा को एक वाहन की आवश्यकता होगी। यदि गांव से नजदीकी शहर व कस्बे की दूरी 5-7 किलोमीटर दूर है तो उसे शुरू में साइकिल से काम चलाना चाहिये। यदि अधिक दूरी है तो उसे मोटर साइकिल लेनी चाहिये। आजकल मोटर साइकिल भी लोन पर यानी फाइनेंस में मिल जातीं है। इसके लिए थोड़े से ही पैसों की जरूरत होती है। इसमें मेहनत के साथ ईमानदारी की जरूरत है। आपके प्रोडक्ट क्वालिटी अच्छी होगी तो उसके पैसे मार्केट में सबसे अच्छे मिलेंगे। ग्राहकों की बात ही क्या करें, एक बार आपका प्रोडक्ट किसी के मन को भा गया तो वह आपसे अधिक से अधिक माल खरीदने की कोशिश करेगा। इस समय आपको अपने प्रोडक्ट की कीमत अच्छी लेनी चाहिये अधिक नहीं लेनी चाहिये। इससे आपके बिजनेस की डिमांड बनी रहेगी।
5. पशुपालन
पशुपालन का काम वो लोग कर सकते हैं जिनके पास अच्छी खासी पूंजी है और घर में कोई ऐसा शख्स है जिसको इस काम में काफी अच्छा अनुभव हो। जो युवा का मार्ग दर्शन कर सकता हो। इसका कारण यह है कि आज की महंगाई के जमाने में पशुओं की कीमत बहुत अधिक हो गयी है। यह काम करने वाले को पशुओं के बारे में बहुत अच्छी जानकारी होनी चाहिये। इसका कारण यह है कि बिजनेस करने वाले पशुव्यवसायी बहुत अधिक चालाक हो गये हैं वे ग्राहकों को ठगने के लिए अथवा अपना व्यवसाय चलाने के लिए जानवरों के बारे में वो तारीफ करेंगे जो जानवर में होंगी ही नहीं। क्योंकि पशु खरीदने वाला मात्र चंद मिनटों में उसको परखता है। उतनी देर में कुछ ऐसी चीजें हैं जो परखी नहीं जा सकतीं हैं। बाद में पशु के घर में आ जाने के बाद पता चलता है कि पशु में ये कमी है, पशु में वो कमी है। पशु में ऐसी कमी है जिसके कारण उसे मार्केट में बेचा नहीं जा सकता। इसलिये इस बिजनेस के लिए अनुभवी व्यक्ति का साथ में होना जरूरी है। यदि युवाओं को इन बातों की समझ नहीं है तो किसी भरोसेमंद बुजुर्ग की सेवाएं ले सकता है। इसके अलावा गांवों में होने वाले पशुओं के बच्चों को खरीद कर उन्हें बटाई आदि पर भी दिया जा सकता है। साथ ही गांवों में लगने वाले मेलों में अच्छे पशु बाजार की अपेक्षा अधिक सस्ते मिल सकते हैं। वहां से पशु खरीद कर उन्हें रीसेल करके लाभ कमाया जा सकता है। इसमें काफी अच्छी कमाई है।
6. टेलरिंग
शहरों में रेडीमेड गारमेंट का चलन हो गया है लेकिन गांवों में अभी इस तरह का प्रचलन नहीं हो पाया है। वहां अधिकांश लोग महिला हों या पुरुष सभी कपड़े खरीदकर सिलवाना पसंद करते हैं। वहां पर टेलरिंग का काम आसानी से किया जा सकता है। शुरू-शुरू में थोड़े दिनों तक सिलाई का काम ट्रेनिंग करके या किसी सिलाई की दुकान में काम करके सीखा जा सकता है। एक बार अच्छा अभ्यास होने पर सिलाई मशीन लेकर अपना काम शुरू किया जा सकता है। त्योहारों पर आज भी टेलरिंग के काम की बहुत अधिक डिमांड रहती है। इस काम का लाभ यह भी है कि पुरुष के साथ महिला भी हाथ बंटा सकती है। जिससे आमदनी अच्छी खासी हो सकती है।
7. खुदरा दुकान का बिजनेस
गांवों में अनाज और सब्जी के अलावा गृहस्थी में काम आने वाली अनेक चीजों की जरूरत होती है। इसके लिए गांव के लोगों को शहर भागना पड़ता है। इसमें उनका समय और पैसा दोनों ही बर्बाद होता है। यदि लोगों की जरूरत का सामान की दुकान गांव में खोल ली जाये तो वो काफी चलेगी। बस आपको दुकान चलाने का तरीका आता हो और दाल में नमक जैसा फायदा लेने की सोचें तभी आपका बिजनेस अच्छा चलेगा वरना नहीं। इसके लिये आप अपने घर के कमरे में ही दुकान खोल सकते हैं। यदि ऐसा नहीं है तो दो-तीन हजार रुपये की लकड़ी की दुकान बनाकर अपना काम शुरू कर सकते हैं। शुरू-शुरू में थोड़ा-थोड़ा सामान लायें। जैसे जैसे आमदनी होती जाये और लोगों की डिमांड के अनुरूप सामान बढ़ाते जायें। कुछ दिन बाद आपकी दुकान अच्छी खासी दुकान बन जायेगी।
8. मोबाइल रिपेयरिंग व रिचार्ज
शहर हो, कस्बा हो या गांव हो। आजकल हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल तो होता ही है। हर व्यक्ति कोशिश करता है कि उसके पास एंड्रायड फोन ही हो क्योंकि अब यह सूचना देने या टेलीफोन देने वाला एक साधारण यंत्र नहीं रह गया है बल्कि आम आदमी की जरूरत बन गया है। सुबह से रात तक यह मोबाइल फोन अनेक तरह से काम आता है। इसलिये कोई भी व्यक्ति मोबाइल फोन के बिना एक पल भी नहीं रह सकता है। मतलब कहने का यही है कि मोबाइल धारकों की संख्या अधिक है। मोबाइल समय-समय पर खराब भी होते हैं उनकी रिपेयरिंग के लिए शहरों की दुकानों का सहारा लेना होता है। मोबाइल सिम व टीवी सर्विस का रिचार्ज भी कराना होता है तो गांव से शहर को भागना होता है। ऐसी स्थिति में मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीख कर कोई युवा गांव में शॉप खोलता है तो उसके लिए काफी अच्छे चांस होते हैं।
9. साइकिल व मोटर साइकिल रिपेयरिंग का बिजनेस
गांवों में लगभग प्रत्येक व्यक्ति के पास मोटरसाइकिल होती है। भले ही इनमें से 50 प्रतिशत पुरानी हों यानी रीसेल से खरीदी गयी हों। यदि किसी के पास मोटर साइकिल नहीं हुई तो साइकिल तो अवश्य ही रहती है। इसका कारण यह है कि दिनभर में ऐसे अनेक काम निकलते हैं जिनके लिए गांव के लोगों को कम से कम 2 या 3 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है। कुछ काम इतने अर्जेन्ट होते हैं कि उनके लिये पैदल नहीं जाया जा सकता है। इसलिये इन कामों के लिए आपको वाहन तो रखना ही होगा। वाहन रखे जाते हैं और अधिकांश वाहन पुराने खरीदे जाते हैं तो उनमें खराबी भी अक्सर आती रहती है। इसके लिए गांवों में सुविधा मिल जाये तो गांव वाले खुश हो जायेगे और काम करने वाले को अच्छी खासी आमदनी भी मिल जायेगी।
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