पढ़ाई करने के बाद युवा नौकरी की तलाश में लग जाते हैं और उन्हें देर-सबेर नौकरी मिल जाती है। उस समय युवाओं को नौकरी के बदले में मिलने वाली सैलरी के बारे में अधिक ज्ञान नहीं होता है। कारपोरेट जगत द्वारा दी जाने वाली ग्रॉस सैलरी को ये युवा अपनी फाइनल यानी रियल सैलरी मान लेते हैं और एक माह तक नौकरी करने के बाद जब उन्हें सैलरी मिलती है तो वे उस समय हक्का-बक्का रह जाते हैं और उस समय वह यह सोचते हैं कि उनके साथ ठगी हो गयी। लेकिन ऐसा नहीं होता है वो सरकारी नियमों के तहत टोटल सैलरी होती है, जिसे ग्रॉस सैलरी कहा जाता है। उसके बाद ग्रॉस सैलरी से अनेक प्रकार के टैक्स आदि की कटौती होती है। उसके बाद कर्मचारी को नेट सैलरी हाथ में दी जाती है।
क्यों होता है सैलरी पर विवाद
सैलरी को लेकर अक्सर विवाद होता रहता है। कारपोरेट जगत हो या एमएनसी में कर्मचारियों को दी जाने वाली सैलरी को लेकर अधिकांश कन्फ्यूजन होता है। अक्सर कर्मचारी ग्रॉस सैलरी को इनहैंड सैलरी या टेकहोम सैलरी समझ लेते हैं। जिसके कारण यह शिकायत रहती है कि नौकरी पर रखते वक्त कुछ और सैलरी तय हुई थी और अब वो सैलरी नही मिल रही है बल्कि उससे बहुत कम सैलरी दी जा रही है।जबकि ऐसा नहीं है। नौकरी पर रखते समय कर्मचारी को ग्रॉस सैलरी बतायी जाती है। इसमें अनेक कटौतियां व सुविधाएं शामिल होती हैं। इनका हिसाब-किताब किये जाने के बाद ये सैलरी ग्रॉस सैलरी से काफी कम हो जाती है। इस बात को अच्छी तरह से समझ लेने के बाद किसी तरह का विवाद नहीं हो सकता है।
क्यों रखते हैं आकर्षक ग्रॉस सैलरी
कारपोरेट जगत में कुशल एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों अपनी-अपनी ओर आकर्षित करने के लिए विभिन्न संस्थान अपने-अपने हिसाब से ग्रॉस सैलरी तय करते हैं। ग्रॉस सैलरी के अलावा ये संस्थान कर्मचारियों को लुभाने के लिए अनेक तरह की लुभावनी योजनाएं भी उनके समक्ष रखते हैं ताकि वे उनके प्रलोभन में आकर उनके संस्थान में काम कर सकें। ग्रॉस सैलरी का ढांचा ऐसा बनाया जाता है जिसको देखकर नया कर्मचारी खुश हो जाता है और वो यह सोचता है कि उसे इतना फायदा हो रहा है लेकिन नये नये संस्थानों में सरकारी नियमों के तहत अनेक ऐसे-ऐसे कटौती के प्रावधान होते हैं, जिनसे कर्मचारी अवगत नहीं होता है। जब प्रथम वेतन उसे कटौती के बाद मिलता है तब उसे संस्थान के बारे में पता चलता है।
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कारपोरेट जगत में नियुक्त किए गए नए कर्मचारियों की सैलरी मिलने के बाद यह शिकायत रहती है जो उनसे वादा किया गया था, उतना वेतन नहीं मिल रहा है। उस बारे में वह अपनी शिकायत तक दर्ज कराते हैं। इसके बाद जब उन्हें बताया जाता है कि जो पहले बतायी गयी थी वो आपका ग्रॉस सैलरी थी जिसमें अनेक प्रकार के टैक्स व सुविधाओं का शुल्क शामिल था, जिनकी कटौती करने के बाद ये सैलरी दी जा रही है। आपके साथ कोई बेइमानी नहीं की जा रही है। लेकिन कर्मचारी के मन में एक बार जब शंका उत्पन्न हो जाती है तो वह आसानी से ये बातें नहीं मानता। जब वह कई संस्थानों में काम कर लेता है और सभी संस्थानों में इसी तरह का व्यवहार किया जाता है तब उसे ग्रॉस सैलरी के बारे में जानकारी हो पाती है।
कारपोरेट जगत में सैलरी तय करने के तरीके
कारपोरेट जगत में कर्मचारियों को मिलने वाली सैलरी या वेतन तीन तरह से तय होती है या यह कह सकते हैं कि तीन शब्दों से मिलाकर सैलरी बनती है। जिन्हें हम ग्रॉस सैलरी,नेट सैलरी और कंपनी की लागत के बीच अंतर के कारण यानी सीटीसी कहते हैं। आम तौर पर न गहराई से न जानने वाले इन तीनों शब्दों का एक ही मतलब सैलरी से ही लगाते हैं जबकि इन तीनों अलग-अलग हैं।
किसको कहते हैं नेट सैलरी
कर्मचारियों को मिलने वाली ग्रॉस सैलरी के बाद नेट सैलरी शब्द और उसकी परिभाषा को स्पष्ट करना भी जरूरी है। इससे कर्मचारी यह जान सकता है कि कर्मचारी को मिलने वाली ग्रॉस सैलरी क्या और नेट सैलरी क्या है? आइए जानते हैं कि नेट सैलरी क्या होती है?
- कर्मचारियों को ग्रॉस सैलरी में सारी वैधानिक कटौतियां काटे जाने के बाद जो राशि मिलती है उसी को नेट सैलरी कहते हैं।
- नेट सैलरी कर्र्मचारियों को मिलने वाले वेतन का वह हिस्सा है जो उसे नकद प्राप्त होता है। सैलरी का कैलकुलेशन पीएफ, ग्रेच्युटी व अन्य करों की राशि को ग्रॉस सैलरी से घटा कर दी जाती है। अक्सर कर्मचारी ग्रॉस सैलरी को ही नेट सैलरी समझ लेते हैं।
क्या मतलब होता है सीटीसी यानी कास्ट टू कंपनी का
सीटीसी का अर्थ यह है कि एक वर्ष में संस्थान द्वारा किसी कर्मचारी पर खर्च की गई कुल धनराशि। कोई भी संस्थान अपने पैसे का एक हिस्सा अपने कुशल, योग्य और सक्षम कर्मचारियों को काम पर बनाए रखने के लिए खर्च करता है। साथ ही संस्थान नए कर्मचारियों को भी आकर्षित करने के लिए अच्छी सैलरी की पेशकश की जाती है। इसकी व्यवस्था करने को सीटीसी कहते हैं। कुछ खास बातें इस प्रकार हैं:-
- कर्मचारियों द्वारा किये गये कार्य के लिए उनकी प्रोफेशनल क्षमता और संगठन के लिए काम करने में बहुमूल्य समय दिये जाने के बदले में कर्मचारी यह तो उम्मीद करता है कि उसे संगठन सेवानिवृत्ति के बाद उनके भविष्य का भी ख्याल रखेगा।
- इसी वजह से संस्थान कर्मचारी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कर्मचारी भविष्य निधि और ग्रेच्युटी में भी योगदान देता है। सेवा निवृत्ति के बाद दी जाने वाली लाभकारी योजनाओं में खर्च होने वाली धनराशि को कंपनी की लागत में शामिल किया जाता है।
- संस्थान द्वारा कर्मचारी को उनकी सालाना क्षमता के प्रदर्शन के आधार पर बोनस या कमीशन, इनिशिएटिव जैसे भुगतान किये जाते हैं। ये भुगतान कर्मचारी के पे स्केल के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में किया जाता है।
- कर्मचारियों और उनके परिवार की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना भी संस्थान की जिम्मेदारी होती है। इसलिये संस्थान कर्मचारियों का स्वास्थ्य बीमा, जीवन बीमा व चिकित्सा की व्यय व अन्य लाभ दिये जाते हैं। ये सारे कंपनी की लागत का हिस्सा है।
- ऑफर लेटर में दर्ज की गयी कंपनी की लागत से सैलरी हमेशा कम ही होती है। इसका कारण कुछ खर्चे ऐसे हैं जो संस्थान सीधे स्वयं वहन करता है।
- कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों को अलग से सुविधाएं देतीं हैं, जो उनकी लागत में शामिल होता है। जैसे बैंक और बैंकिंग संस्थन अपने कर्मचारियों को रियायती ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराते हैं। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को लंच का कूपन देतीं हैं। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करतीं हैं। ये सारे खर्चे कर्मचारियों के वेतन तय करने के लिये कंपनी अपनी लागत निकालती है।
किस तरह से तय होती है ग्रॉस सैलरी
ग्रॉस सैलरी वो सैलरी होती है जिसमें कर्मचारी को दिये जाने वाला मूल वेतन, कर्मचारी भविष्य निधि, ईएसआई, ग्रेच्युटी, एचआरए, एलटीए तथा अन्य कई प्रकार के एलाउंस शामिल होते हैं। आइये जानते हैं कि कौन-कौन से भत्ते और कौन-कौन से लाभ ग्रॉस सैलरी के हिस्से होते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है:-
- कर्मचारी की नियुक्ति के समय जो सैलरी बतायी जाती है, वो ग्रॉस सैलरी होती है। उस सैलरी में कर्मचारी भविष्य निधि, ईएसआई, ग्रेच्युटी, और आयकर के लिए कटौतियां शामिल होतीं हैं। ग्रॉस सैलरी में इन सभी मदों की राशि को घटाया जाता है। उसके बाद कर्मचारी को बचा हुआ पैसा दिया जाता है।
- ग्रॉस सैलरी से कर्मचारी भविष्य निधि के नाम से की जाने वाली कटौती कर्मचारी के लिए ही रिटायरमेंट के बाद लाभ देने वाली योजना है। इस मद में कर्मचारी और संस्थान दोनों ही प्रत्येक महीने में मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 12 प्रतिशत हिस्सा एक जगह जमा करते हैं। जो रिटायरमेंट के बाद आपको मिल जाता है। कर्मचारी इस मद से पैसा बीच में अत्यावश्यक जरूरतों के लिए एक सीमा तक निकाल भी सकता है।
- ग्रॉस सैलरी में शामिल ग्रेच्युटी की राशि संस्थान रिटायरमेंट के समय आपके द्वारा अपने रोजगार के दौरान प्रदान की गयी सेवाओं के लिए देता है। ग्रेच्युटी के भुगतान के लिए एक प्रमुख शर्त यह रखी गयी है कि कोई भी कर्मचारी एक संस्थान में लगातार 5 वर्ष या इससे अधिक समय तक सेवाएं प्रदान करता है उसे ही ग्रेच्चुटी दी जाती है।
- कर्मचारी के समक्ष संकटकालीन स्थिति आने पर भी संस्थान ग्रेच्युटी का भुगतान करता है। जैसे रिटायरमेंट या पांच साल पहले ही किसी कर्मचारी की अचानक किसी कारण मृत्यु हो जाये अथवा वो किसी भी हादसे के कारण विकलांग हो जाये।
ग्रॉस सैलरी में क्या-क्या रहता है शामिल
ग्रॉस सैलरी की परिभाषा को जानने के लिए यह जरूरी होता है कि ग्रॉस सैलरी में कौन-कौन से भत्ते आदि शामिल रहते हैं और जिनकी कटौती के बाद सैलरी आती है। इन सबको मिलाकर ही ग्रॉस सैलरी बनती है। कुछ भत्ते व टैक्स आदि इस प्रकार हैं:-
- पे स्केल यानी मूल वेतन: ग्रॉस सैलरी में शामिल पे स्केल यानी मूल वेतन कर्मचारी को किए गए भुगतान में भत्ते आदि जोड़ने से पहले और किसी भी निश्चित योगदान या करों को काटने से पहले की राशि होती है।
- आवासीय भत्ता यानी हाउस रेंट एलाउंस: आवासीय भत्ता कर्मचारी को रोजगार के लिए अपने निवास स्थान के अलावा अन्य स्थान पर रहने के लिए किराये पर लिये गये घर के मुआवजे के रूप में दिया जाता है। मकान किराया भत्ता कर से मुक्त रहता है। टैक्स से छूट वाले हाउस रेंट एलाउंस की गणना पे स्केल से की जाती है।
- वाहन भत्ता यानी ट्रांसपोर्ट एलाउंस: ट्रांसपोर्ट एलाउंस कर्मचारियों को पे स्केल के अलावा यात्रा खर्च की क्षतिपूर्ति के लिए दिया जाता है, इस भत्ते का उपयोग घर से कार्यालय तक आने-जाने में किया जाता है।
- टेलीफोन या मोबाइल फोन एलाउंस: कर्मचारी को मोबाइल व टेलीफोन खर्च के लिए उसे जो राशि दी जाती है उसे टेलीफोन व मोबाइल फोन एलाउंस कहा जाता है। यह ग्रॉस सैलरी का हिस्सा है।
- छुट्टी व यात्रा भत्ता यानी लीव एण्ड टूर एलाउंस: यह एलाउंस् कर्मचारी को अपने संस्थान से काम से छुट्टी के दौरान की गई यात्राओं पर होने वाले खर्च के लिए दिया जाता है। इसे एलटीए के नाम से भी जाना जाता है। एलटीए का भुगतान चार साल के दौरान केवल दो यात्राओं के लिए किया जाता है। इसमें बस का किराया, ट्रेन का टिकट शामिल है। यह भत्ता भी ग्रॉस सैलरी का एक हिस्सा है। अलग-अलग कंपनियों में अलग-अलग नियमों व शर्तें इस भत्ते के लिए लागू हैं।
- इन भत्तों के अलावा संस्थान द्वारा कुछ खर्चों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों को कुछ विशेष व अन्य भत्ते भी दिये जाते हैं। वे भी ग्रॉस सैलरी में शामिल होते हैं।
- ग्रॉस सैलरी में ओवर टाइम और बोनस आदि भी शामिल रहता है।
- अन्य लाभ: अनेक संस्थानों द्वारा अपने कर्मचारियों को कई अन्य लाभ भी उपलब्ध कराये जाते हैं। जैसे खाने की कैन्टीन व सामान खरीदने वाली सस्ती दरों वाली दुकान तथा बच्चों की शिक्षा के लिए रियायती फीस वाले स्कूल आदि ।
ग्रॉस सैलरी इन सभी को मिलाकर बनती है। इसलिये कर्मचारियों को इस बात की जानकारी कर लेनी चाहिये कि नौकरी के बाद उसकी ग्रॉस सैलरी तो जितनी तय हो रही है वह है लेकिन सारी कटौतियों के बाद उसको कितनी राशि मिलने वाली है। इस जानकारी को प्राप्त करने के बाद न तो कर्मचारी को किसी प्रकार का भ्रम रहेगा और न ही वह कम सैलरी मिलने की शिकायत ही करेगा।संस्थान को चाहिये कि वह नौकरी पर रखते वक्त कर्मचारी से स्पष्ट कर दे कि इस समय जो सैलरी बतायी जा रही है वो ग्रॉस सैलरी है न कि प्रत्येक माह के बाद मिलने वाली सैलरी है। ग्रॉस सैलरी में कितनी किस मद में कटौती होने वाली है, उसकी भी जानकारी नये कर्मचारी को देनी चाहिये। इससे कर्मचारी मिलने वाली रियल सैलरी से संतुष्ट रहता है। उसे किसी प्रकार कोई भ्रम नहीं रहता है।
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