कैसा रहा बिज़नेस करने वालों के लिए 2020? किसको हुआ फायदा, किसको नुकसान?

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कैसा रहा बिज़नेस करने वालों के लिए 2020? किसको हुआ फायदा, किसको नुकसान?

2020 में बिज़नेस (Business in 2020)

साल 2020 हर लिहाज़ से पूरी दुनिया के लिए दुखदायी रहा है। चाहे बात बिज़नेस की हो या चाहे लोगों के स्वास्थ्य की, इस साल ने लगभग सभी को निराश किया है। इतिहास उठाकर देखें तो विश्वयुद्ध के बाद यह सबसे बड़ा शॉक है जिससे पूरी दुनिया त्रस्त है।

भारत में भी जब से लॉकडाउन लगा है, तभी से सारी आर्थिक गतिविधियां  जैसे रुक सी गयी हैं। सारी उम्मीदें बस लॉकडाउन के प्रतिबंधों के आसान किये जाने पर ही टिकी हैं।

मई के महीने में कुछ प्रतिबंधों में ढील ज़रूर दी गयी थी। हालाँकि जान के डर से पब्लिक बाज़ारों में पहले के मुकाबले कम ही निकलती दिखाई दी। पूरी तरह से इकॉनमी कैसे रिवाइव की जाए यह अब भी अनिश्चित है।

क्या गिरा क्या चढ़ा?

पर्चेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) और ईंधन की कम सेल्स, जुलाई महीने में गिरती ग्रोथ की तरफ इशारा करते हैं। इस समय बिज़नेस गतिविधियां काफी कम हुई हैं। बैंक्स का लोन देना भी कम हुआ है और टैक्स कलेक्शन भी काफी कम रहे हैं। जून के मुकाबले जुलाई महीने में यह मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई और भी तेज़ी से नीचे गिरा है। पीएमआई देश में निजी क्षेत्र की इकनोमिक ग्रोथ को नापने का एक इंडेक्स होता है। इसे लगभग 50 के जादूई आंकड़े के ऊपर ही रहना चाहिए।

कोविड-19  की वजह से यह साल यूं तो बिज़नेस के लिए कुल मिलाकर बुरा रहा है। हालाँकि इस बीच कुछ कंपनियां ऐसी भी रही हैं जिनके लिए इस महामारी ने तरक्की के रास्ते खोले हैं। कंपनियों में वर्क फ्रॉम होम होना, स्कूल कॉलेजेस का बंद होना और सरकार द्वारा सामाजिक कार्यों पर खर्चा किया जाना; कुछ कंपनियों को बेहतर ग्रोथ नंबर्स बनाने के मौके दे रहा है। इन कम्पनियों पर कोरोना भी अपना प्रकोप नहीं डाल पाया है। शिक्षा, कृषि, स्वाथ्य, कंटेंट और आवश्यक खुदरा व्यापार के कई बिज़नेस जो टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहे हैं, उन्हें इन विपरीत परिस्थितियों में नए पंख मिले हैं। इसके अलावा एक्सपर्ट्स का मानना है कि पिछले कुछ समय में सरकार द्वारा जनहित में उठाए जा रहे कदम, ऐसी कंपनियों को काफी फायदा पहुंचाएंगे जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए काम कर रही हैं।

इंवेस्टरों का नज़रिया

इन्वेस्टर्स भी सोशल इम्पैक्ट इन्वेस्टिंग के नाम पर ऐसी कंपनियों में ही निवेश करना पसंद कर रहे हैं जो सामाजिक तौर पर अच्छा काम कर रही हैं। इससे निवेशकों को आर्थिक फायदा तो हो ही रहा है ,साथ में सकारात्मक सामाजिक लाभ भी प्राप्त हो रहे हैं।

डिजिटल एजुकेशन, डिजिटल हेल्थ, डिजिटल रिटेल, डिजिटल कंटेंट जैसे सेक्टर्स की डिमांड कोरोना काल में बढ़ी है, वहीँ फाइनेंस टेक्नोलॉजी में क्रेडिट देने वाली कंपनियां खासकर घाटे में रही हैं। बाकी के सेक्टर्स जैसे रिटेल,परिवहन, ऑपरेशन्स आदि में गतिविधियां लॉकडाउन के चलते रुक सी गयीं।

इस साल आए वर्क फ्रॉम होम कल्चर का फ़ायदा काफी बिज़नेसेस ने उठाया है। विभिन्न ओटीटी (OTT) लाइव स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स, ऑनलाइन एजुकेशन पोर्टल्स, डिजिटल कंटेंट प्रोवाइडर्स, ऑनलाइन गेमिंग स्टैक्स आदि इसी तरह के कुछ बिज़नेस हैं, जिन्होंने घर बैठे बोर होती जनता को टाइमपास  करने के साथ ही सीखने के अवसर भी मुहैया कराए हैं।

वहीँ, सरकार की जनहित की मंशाओं के अनुरूप काम कर रही कृषि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था आदि से जुड़ी स्टार्टअप कंपनियों को भी ऐसे समय में सरकार द्वारा अनाउंस किये गए मेगा रिलीफ पैकेजों से इनडाइरेक्ट फायदा पहुंचा है। किसानों, डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) लाभार्थियों, स्वयं सहायता समूहों, कम वेतन पाने वाले लोगों आदि के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक मदद, ऐसे व्यवसायों  को फायदा पहुंचा सकती है जो समाज के निचले तबके के लिए काम करते हैं।

लॉकडाउन का प्रभाव

कई छोटे डिस्ट्रीब्यूटर्स की दुकानें लॉकडाउन के कारण बंद हो गयीं। यह निश्चित ही उन दुकानदारों के लिए दुखदायी है परन्तु ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए यह एक मौका है, ज़्यादा से ज़्यादा कस्टमर्स तक पहुँचने का। अपने डिलीवरी चैनल स्ट्रीमलाइन कर के यह कंपनियां काफी हद तक टियर-1, टियर-2 शहरों के कस्टमर्स को लुभाने में कामयाब हो रही हैं।

डेयरी कम्पनियाँ, फ़ूड प्रोसेसर्स, रिटेलर्स आदि सेक्टर्स को मार्किट में टिके रहने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। डाटा एनालिटिक्स फर्म नीलसन के अनुसार, 2020 में लगे लॉकडाउन्स, प्रतिबंधों, सोशल डिस्टन्सिंग आदि ट्रेंड्स के कारण भारत में एफएमसीजी सेक्टर के अंतर्गत आने वाली कंपनियां जो लोगों के जरुरत के सामान जैसे कि पर्सनल केयर, स्किन केयर, हेयर केयर, फूड आइटम, डेयरी आइटम आदि प्रोडक्‍ट्स का निर्माण करती हैं, उनकी ग्रोथ में काफी कमी आई है।सुधार की कुछ उम्मीदें जून माह ने नज़र आईं हैं परन्तु साल के शुरूआती महीनों में इस इंडस्ट्री ने 6 % का गिराव देखा।

मार्च 2020 ऑटो सेक्टर के लिए भी काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। 21 दिन तक चले लॉकडाउन के कारण प्रोडक्शन और सेल्स दोनों ही रुक से गए थे। राजस्व की कमी के कारण, कंपनियों को अपनी फिक्स्ड कॉस्ट और वर्किंग कैपिटल जुटाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। मार्च में भारत की ईंधन की डिमांड भी पिछले दो दशकों में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गयी थी।

प्रतिक्रिया

यह तो तय है कि व्यवसायों पर जो भी आर्थिक प्रभाव इस महामारी का पड़ेगा, वह काफी लम्बा चलने वाला है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत 2020 वित्त-वर्ष में लगभग 4.5 % का संकुचन देखेगा। हालाँकि अगले वित्त वर्ष में पुनः एक अच्छे ग्रोथ रेट की संभावना है। अगले दस सालों में मार्केट्स तेज़ी से बढ़ेंगे और तरक्की के काफी सारे अवसर भी प्रदान करेंगे। इनका लाभ लेने के लिए कंपनियों को न सिर्फ इन अवसरों में भागीदारी करनी होगी, बल्कि अपने बिज़नेस मॉडल में भी एक स्तर तक बदलाव लाना होगा।

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