स्टार्टप इंडिया - भारत में स्टार्टप कल्चर कैसा है?

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स्टार्टप इंडिया - भारत में स्टार्टप कल्चर कैसा है?

भारत, हाल के दिनों में, स्टार्टअप कंपनियों के लिए एक हब के रूप में उभरा है। स्टार्टअप किसी भी ऐसी कंपनी या वेंचर को कहा जाता है जो लोगों को नयी या पुरानी समस्याओं के नए समाधान उपलब्ध कराने के लिए शुरू की जाती हैं।

साल 2019 में हमारे देश में लगभग 1300 नए स्टार्टअप बढ़े हैं। भारत में बढ़ते स्टार्टअप कल्चर और स्टार्टअप की बेहतर ग्रोथ के कई कारण हैं। भारतीय मार्किट स्टार्टअप कंपनियों के लिए काफी मौके प्रदान करती है और बदले में स्टार्टअप भारत में ग्रोथ और रोज़गार के अवसरों में बढ़ोतरी करते हैं। पिछले दशकों में भारत में स्टार्टअप काफी बढ़े हैं इसलिए स्टार्टअप कल्चर ने भी ज़ोर पकड़ा है। भारत में यह कल्चर धीमी गति से परन्तु निरंतर आगे बढ़ा है।

आइये भारत के स्टार्टअप कल्चर के कुछ मुख्य बिंदुओं पर गौर करें।

बिज़नेस सेटअप करने की कम है लागत

भारत एक पूँजी-प्रधान देश न होकर एक श्रम-प्रधान देश है। यहाँ सस्ता लेबर आसानी से उपलब्ध है इसलिए यहाँ बिज़नेस सेटअप करने की लागत भी कम है। इसी कारण से कई बड़ी कम्पनियों ने अपने प्लांट्स और ऑफिस भारत में शिफ्ट किए हैं। स्टार्टअप्स को इस फैक्टर से काफी फायदा है।

सरकार का सपोर्ट

सरकार ने पिछले दशक में स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी कई योजनाएं लांच की हैं, जिनकी वजह से भारत में स्टार्टअप्स को काफी बूस्ट मिला है। सरकार की तरफ से दी जाने वाली सब्सीडी के कारण नए सेक्टर और कुछ ग्रामीण इलाकों में स्टार्टअप बढ़े हैं। ऑफिस के लिए जगह, इंफ्रास्ट्रक्चर, गाइडेंस, पूँजी आदि की उपलब्धता भी बढ़ी है।

इंटरनेट का बढ़ता उपयोग

भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसँख्या है। सस्ते हाई स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता के कारण इंटरनेट का उपयोग बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्र में भी इंटरनेट की पहुँच ने पूरे देश में प्रचार-प्रसार को और आसान कर दिया है। इससे स्टार्टअप और बिज़नेस को बढ़ावा मिला है।

टेक्नोलॉजी की पहुँच

टेक्नोलॉजी ने बिज़नेस की कई जटिल प्रक्रियाओं को काफी फ़ास्ट बना दिया है। सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर सिस्टम में हुए बड़े बदलावों की वजह से डाटा को रिकॉर्ड करना और स्टोर करना अब काफी आसान हो गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉक चेन आदि विकल्पों पर भी अब स्टार्टअप्स द्वारा विचार किया जा रहा है।

कई हैं फंडिंग के विकल्प

पहले नए बिज़नेस मॉडल के लिए फंड्स जुटाने को कुछ ही तरीके थे जैसे बैंक से लोन लेना या फिर दोस्तों या रिश्तेदारों से उधारी लेना। परन्तु आज के समय में फंडिंग के कई विकल्प मौजूद हैं। स्टार्टअप फाउंडर अब एंजेल इन्वेस्टर्स, वेंचर कैपिटलिस्ट, सीड फंडिंग आदि की भी मदद ले सकते हैं।

भारत में स्टार्टअप से जुड़ी चुनौतियाँ :

भारत में स्टार्टअप को लेकर कुछ अहम चुनौतियाँ हैं जिनसे निबटने के लिए प्रशासन और खुद स्टार्टअप  कंपनियों द्वारा प्रयास किए जाने चाहिए।

मेच्योर स्टेट में फंडिंग-

भारतीय स्टार्टअप्स में एंजेल और वेंचर कैपिटल इन्वेस्टमेंट ने पिछले कुछ सालों में तेज़ी पकड़ी है परन्तु ये इन्वेस्टर्स जोखिम कम करने हेतु फंडिंग के लिए थोड़े मेच्योर स्टार्टअप्स को चुनना पसंद करते हैं। नए स्टार्टअप को विकसित करने के लिए अधिक पैसे की आवश्यकता होती है। आईडिया से लेकर इन्वेस्टमेंट पाने तक के अंतराल को भरने के लिए सरकार द्वारा एंजेल इंवेस्टमेंट को टैक्स लाभ आदि देकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हालाँकि सरकार द्वारा स्टार्टअप्स के लिए सीड फण्ड स्थापित करने, ग्रांट प्रदान करने जैसे जो कदम उठाए गए हैं वे काफी हद तक कारगर साबित हुए हैं।

मेट्रो शहरों के बाहर स्टार्टअप-

स्टार्टअप के मुख्य खिलाड़ी ज़्यादातर मेट्रो शहरों में आधारित हैं। जो स्टार्टअप इन शहरों से बाहर हैं, उन्हें सफल होने में ज़्यादा दिक्कत होती है।ऐसे टियर 2, 3 और 4 शहरों में बसे उद्यमियों को प्रोत्साहन प्रदान करना बेहद ज़रूरी है।

स्टार्टअप फाउंडर और कस्टमर-

आजकल अधिकतर भावी कस्टमर ग्रामीण इलाकों से हैं, जहाँ  स्टार्टअप्स के लिए एक अच्छा मार्किट है। हालाँकि फाउंडर्स की जानकारी और ग्रामीण इलाकों की हकीकत में थोड़ा जमीनी अंतर् होता है। एक सफल स्टार्टअप के लिए मार्किट और यूज़र रिसर्च काफी अहमियत रखते हैं। ऐसे में स्टार्टअप फाउंडर्स और कस्टमर्स के बीच जुड़ाव बनाने के लिए ग्राउंड पर जाकर उनसे बात करना और उनकी ज़रूरतें समझना अहम है।

सही एम्प्लोयी चुनना-

सही एम्प्लोयी खोजने के क्रम में स्टार्टअप्स को अपना दायरा थोड़ा बढ़ाना पड़ता है। चूँकि स्टार्टअप्स बड़ी कंपनियों की तरह बड़ी सैलरी ऑफर नहीं कर सकते , उन्हें अपनी कम्पनी में सही टैलेंट लाने के लिए सीखने के अवसरों जैसे अन्य प्रोत्साहन देने पर निर्भर रहना होता है। साथ ही अच्छा वर्क कल्चर भी अच्छे टैलेंट को लाने और रोके रखने रखने में सहायक होता है।

कैसे बढ़ेगा स्टार्टअप कल्चर?

लोगों की रूचि स्टार्टअप के क्षेत्र में बढ़ाने के लिए मीडिया की काफी बड़ी भूमिका रही है। सफल स्टार्टअप के पीछे की कहानियां मीडिया में हाईलाइट होने से लोग प्रेरित हुए हैं। अब एंटरप्रेन्योर यानि अपने खुद के बिज़नेस का मालिक होना काफी कूल माना जाने लगा है। स्टार्टअप को एक करियर के रूप में चुनने को लेकर भी अब परिवार और समाज के लोग पहले से ज़्यादा सहायक हुए हैं। हालाँकि अभी भी कई ऐसे लोग हैं जो नौकरी को ही एक सुरक्षित करियर मानते हैं। पढ़ाई के कोर्स में एंटरप्रेंयूर्शिप का कोर्स जोड़ना एक अच्छा विकल्प हो सकता है जिससे छात्र-छात्राएं स्टार्टअप के क्षेत्र में अपना करियर बनाने के लिए तैयार हो सके। शिक्षा के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि प्रतिभाओं का एक विस्तृत भंडार तैयार किया जा सके। भारतीय हमेशा से ही टैलेंटेड रहे हैं। हमारी अधिकतर आबादी युवाओं की है, जिसके कारण टैलेंट के मामले में हमारा देश काफी संभावनाएँ रखता है। स्कूल, कॉलेजों से निकलने वाले यह फ्रेश टैलेंट अगर अपनी जानकारी और स्किल्स का प्रयोग अपना खुद का वेंचर खोलने में लगाएं, तो भारत में यह स्टार्टअप कल्चर और भी तेज़ी से आगे बढ़ सकता है। भारत में एक ऐसा स्टार्टअप कल्चर लाने की ज़रूरत है जहाँ रिस्क लेकर कुछ नया निर्मित करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले और असफल होने पर लोग आपको गलत न आंकें।

ऐसे ही कल्चर में हम नौकरी करने के बोझ में खो जाने वाले कई बड़े आइडियाज़ को एक बड़ी कंपनी या प्रोडक्ट के रूप में विकसित होता देख पाएंगे।

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