भारत में भी एकल परिवार का प्रचलन है। इस एकल परिवार में पति-पत्नी होते हैं। परिवार के दो सदस्य यानी पति और पत्नी दोनों ही जॉब या बिजनेस में व्यस्त रहते हैं। ऐसी स्थिति में जब भी उनके परिवार में कोई नया मेहमान आता है, तब शुरू के कुछ दिनों तो नया मेहमान के आने की खुशियां जमकर मनाई जातीं है लेकिन जैसे ही खुशियों का मौसम खत्म होता है। तब नये मेहमान की देखभाल, सुरक्षा आदि की जरूरत महसूस की जाती है उस समय इस फेमिली के समय एक नई समस्या खड़ी हो जाती है, अपने जिगर के टुकड़े को किसको दें जो मेरे जैसी देखभाल और प्यार व ममता दे सके। ऐसी स्थिति में ये पति-पत्नी अपने घर पर किसी मेड सर्वेन्ट को तो रख नहीं सकते है क्योंकि पूरा घर और अपनी जान से प्यारा बच्चा किसी अनजान मेड को चार से आठ घंटे के लिए स्वतंत्र रूप से किस विश्वास पर छोड़ जाये। ये कामा बहुत बड़ा रिस्की है। इसलिये लोग बेबी डे केयर सेंटर का सहारा लेते हैं। इस परिस्थिति को देखते हुए बेबी केयर सेंटर का बिजनेस बहुत अच्छा आइडिया है।
कई तरह के जरूरत मंद लोग शुरू कर सकते हैं ये बिजनेस
बेबी केयर सेंटर की बात करें जहां बिजी फैमिली को अपने बच्चों के लिए कोई सुरक्षित जगह चाहिये जहां पर वो उनकी गैरमौजूदगी में सात-आठ घंटे बिता सके तथा उसे किसी तरह की कोई परेशानी न हो । इसके अलावा उसे घर परिवार के जैसा माहौल मिले। वहीं बेबी केयर सेंटर खोलने वाले बहुत से लोग मिल जायेंगे। ये ऐसे लोग होते हैं, जिन परिवार के पुरुष तो जॉब या बिजनेस के लिए सुबह से शाम तक घर से बाहर चले जाते हैं और घर की महिला के पास कोई काम नहीं होता है। पूरे दिन इधर-उधर की बातें करके, टीवी देखकर या मार्केटिंग आदि करके टाइम पास करना होता है। वो महिलाएं आसानी से ये काम कर सकतीं हैं। इसके अलावा मध्यम वर्ग की वो महिलाएं भी ये काम कर सकतीं हैं जिन्हें कुछ अतिरिक्त आय की जरूरत होती है।
कोई खास योग्यता चाहिये
1. पहले जमाने में तो बिना पढ़े लिखे लोग यह काम करते थे। इससे पैरेंट्स को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। समय-समय पर इस तरह के सेंटर के चलाने में अनेक समस्याएं भी आतीं रहतीं थी, शिकायतें मिलती थी और विवाद भी होते थे लेकिन समय बदलने के साथ अब पढ़े लिखे प्रोफेशनल लोगों ने इस तरह के सेंटर खोलने शुरू कर दिये हैं।
2. इस तरह के सेंटर खोलने के लिए आपको बेबी केयर का अनुभव होना चाहिये। छोटे बच्चों से लेकर बड़े बच्चों की हर एक्टिविटी का पूरा ज्ञान व अनुभव होना चाहिये। आप बच्चों को अच्छी तरह से डील कर सकती हों। साथ ही आज के जमाने में सेंटर चलाने वाले और सेंटर में काम करने वाली मेड आदि सभी इंग्लिस स्पीकिंग आनी चाहिये। क्योंकि इस तरह के सेंटर में काफी हाई क्लास के अधिकारी वगैरह अपने बच्चों को छोड़ कर जाते हैं।
3. शैक्षिक योग्यता की डिग्री तो नहीं चाहिये लेकिन आपको इंग्लिश स्पीकिंग होना ही चाहिये। साथ ही आपका क्रेच का कोई कोर्स कर लेना चाहिये जहां बच्चों की डीलिंग की अनेक बातें सिखाई जातीं हो। इस तरह का कोर्स करने के बाद आपको बिजनेस करने में काफी सुविधा होगी।
4. यदि सेंटर संचालिका स्वयं यह कोर्स नहीं करना चाहती है तो उसे ऐसी मेड को रखना चाहिये जिसे इस तरह का कोर्स कर रखा हो। यदि किसी क्रेज में काम करने वाली अनुभवी मेड मिले तो उसे रखने से पहले उसकी जांच पड़ताल करनी चाहिये। उसने पिछला संस्थान क्यों छोड़ा,उसके कारण जानने के बाद ही रखना होगा।
बहुत ही जिम्मेदारी व रिस्क वाला जॉब है ये बिजनेस
बेबी केयर डे का बिजनेस देखने में बहुत ही सिम्पल और बहुत ही आसान लगता है लेकिन यह बिजनेस बहुत ही जिम्मेदारी वाला और बहुत ही रिस्की और मेहनत वाला बिजनेस है।
1. जिन घरों में छोटे-छोटे बच्चे होते हैं वो इस बिजनेस की समस्याओं को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। आपको अपने घर के दो-तीन बच्चों को ही संभालने में पसीना छूट जाता है। अपने बच्चों की दिनभर देखभाल करने के बाद शाम को इतनी थकान आ जाती है कि कोई सा भी काम करने का मन नहीं करता है। बेबी केयर डे सेंटर में तो आपको विभिन्न परिवारों के लाड़लों की देखभाल की जिम्मेदारी लेनी होती है।
2. आपको पूरी तरह से यह ध्यान रखना होगा कि किसी बच्चे के साथ कोई ऐसी बात न हो जाये कि आपका ग्राहक आपसे नाराज हो जाये। बच्चे तो बच्चे होते हैं उन्हें संभालना आसान काम नहीं होता है। क्योंकि इस बिजनेस में सॉरी का कोई स्थान नहीं होता है। इसकी वजह यह होती है ये बच्चे अपने पैरेंट्स की जिगर के टुकड़े होते हैं।
3. माता-पिता अपने बच्चे को जान से ज्यादा चाहते हैं, वो खुद उससे परेशान होकर उसे डांट फटकार दे, मारपीट दे तो कोई बात नहीं। यदि यही काम कोई और कर दे तो वे आसमान सिर पर उठा लेते हैं।
4. यदि कोई बच्चा सुबह स्वस्थ था वो दोपहर में बीमार हो जाये बेबी केयर सेंटर के इलाज से ठीक न हो तो शाम को बच्चा लेने वक्त पैरेंट्स काफी नाराजगी जताते हैं और सेंटर वालों को उल्टी सीधी सुनाते हैं।
5. कभी बच्चों में मारपीट हो जाये तो पैरेंट्स नाराज हो जाते हैं। बच्चे ने घर में जाकर सेंटर कर्मचारियों व सेंटर की संचालिका की शिकायत की, खाने-पीने के बारे में शिकायत की तो सेंटर वालों को भारी पड़ जाता है। ये सारे रिस्क अक्सर आते रहते है सेंटर चलाने वालों के सामने।
6. इन सारे रिस्क के बावजूद भी बेबी केयर सेंटर अच्छी तरह से चल रहे हैं। उनसे अच्छी कमाई हो रही है। रिस्क तो हर बिजनेस में होता है और रिस्क की डर से कोई बिजनेस छोड़ा नहीं जाता है। इसी तरह से यह बिजनेस भी रिस्क के बीच चलाया जाता है। क्योंकि कहा गया है कि नो रिस्क नो गेन। रिस्क के इन पहलुओं को इसलिये बताया जा रहा है ताकि बिजनेस करने से पहले बिजनेस करने वाला पहले से इस तरह की दिक्कतों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाए।
बिजनेस प्लान बनायें
देखने में छोटा सा बिजनेस भले ही लग रहा हो लेकिन वास्तव में इस छोटे बिजनेस की बड़ी-बड़ी जरूरतें होतीं हैं, जिसके लिए अच्छे मैनेजमंट की जरूरत होती है। इसलिये बिजनेस प्लान बनाना बहुत जरूरी होता है। बेबी डे केयर सेंटर खोलने के लिए बड़े से हॉल और लॉन की जरूरत होती है, यदि आपके घर में ये सुविधाएं हैं तो ठीक वरना किराये पर ले सकते हैं, बच्चों के झूले, खिलौने, टीवी, किताबें, ड्राइंग का सामान, म्यूजिक के इंस्ट्रेमेंट, बिस्तर, डायपर, नाश्ता, खाना, आने जाने का साधन, काम करने वाले सहायक व सहायिका, मेडिकल कन्सल्टेंट, बिजली पानी का खर्च आदि की व्यवस्था पर लगने वाले खर्च का पूरा ब्योरा बिजनेस प्लान में दर्ज करें। सेंटर में शुरू शुरू में लगने वाली लागत कहां से आयेगी। मार्केटिंग का खर्चा व कुछ अन्य अनजाने खचों का बजट भी बिजनेस प्लान में जोड़ लें। इससे आपको काफी मदद मिलेगी।
प्रमुख आवश्यक वस्तुएं
- एक बढ़िया सा हॉल
- लॉन वगैरह हो तो बेहतर
- बच्चों के झूले
- खेलने के लिए खिलौने
- कार्टून आदि की बच्चों की पढ़ने वाली किताबें
- ड्राइंग के लिए ड्राइंग पेपर, कलर, पेंसिल, स्केल आदि
- बेड , गद्दे, रजाई, पिलो कवर, चादर आदि
- नाश्ता, खाने का सामान मीनू के अनुसार
- एक कुक नाश्ता व खाना बनाने के लिए
- एक सहायिका साफ सफाई के लिए
- एक सफाई कर्मी जो बच्चों के डायपर वगैरह बदल सके
- बच्चों को घर से लाने ले जाने के लिए वाहन
- एक ड्राइवर
- कुर्सी मेज फर्नीचर
- डाइनिंग टेबल
- टीवी
इसके अलावा बच्चों की उम्र के अनुसार जरूरत वाली सभी वस्तुओं की आवश्यकता होती है, जो सेंटर चलाने के बाद ही मालूम पड़ती हैं, उन सभी की व्यवस्था सेंटर संचालक को करनी होती है। बच्चों की जरूरत का सामान बहुत ही हाई क्वालिटी का होना चाहिये ताकि पैरेंट्स आसानी से प्रभावित हो सकें।
बेबी डे केयर सेंटर शुरू करने से पहले क्या करना होता है?
सेंटर खोलने से पहले आपको यह देखना होता है कि आपके सेंटर में किस तरह के बच्चे आने वाले हैं। यानी किसी उम्र के बच्चे आ सकते हैं। ये बच्चे कितनी दूर से आते हैं। कितने बच्चों से आपका बजट पूरा हो जायेगा। क्योंकि हर पैरेंट्स चाहता है कि वह अपने बच्चे को उस सेंटर में दे जहां पर कम से कम बच्चे रखे जाते हों ताकि प्रत्येक बच्चे पर पूरा ध्यान दिया जा सके। सेंटर में साफ सफाई की व्यवस्था अच्छी करनी होगी। अपने सेंटर को बहुत अच्छी तरह से डेकोरेट करवाना चाहिये ताकि बाहर से देखकर ही पैरेंट्स अपने बच्चों को आपकी सुपुर्दगी में देने का मन बना लें।
किस उम्र तक के बच्चों को चाइल्ड केयर सेंटर में सर्विस दी जाती है?
क्रेच में किस उम्र से लेकर किस उम्र तक के बच्चों को रखा जाता है अथवा उनको रखने की सर्विस दी जाती है। यह सेंटर मालिक पर निर्भर करता है कि किस उम्र के बच्चों को अच्छी तरह से अपने सेंटर में रख सकेंगे। वैसे तीन तरह की उम्र के बच्चों को आसानी से रखा जा सकता है।
- पहली तरह के वो बच्चे जो बहुत छोटे होते हैं, जैसे 2 साल के बच्चे होते हैं
- दूसरी तरह के वो बच्चे जो 3 से 5 साल तक के बच्चे होते हैं, इस तरह के बच्चे प्ले स्कूल में जाने के बाद क्रेच में रखे जाते हैं
- तीसरी तरह के वो बच्चे होते हैं जो 6 से आठ साल के बच्चे होते हैं, ये बच्चे भी स्कूल में पढ़ाई करने के बाद क्रेच में कुछ समय के लिए आते हैं
इन बच्चों को उम्र के हिसाब से इनके ग्रुप बनाये जाते हैं। इनके ग्रुप को दिन भर रखने के लिए अलग-अलग तरह के शेड्यूल इस तरह से बनाने चाहिये ताकि उनका मनोरंजन भी हो सके और उन्हें आराम करने को भी मिल जाये। जैसे कभी कहानी सुनाना, तो कभी ड्राइंग कराना, कभी कोई प्रतियोगिता कराना आदि
कितनी लागत आती है डे केयर सेंटर खोलने में?
बेबी डे केयर सेंटर खोलने में लागत भी बिजनेस शुरू करने वाले की क्षमता और प्लान के अनुसार ही तय होती है। यदि कोई इसे अपने घर से बहुत छोटे से सेंटर के रूप में खोलना चाहता है। उसके लिये तो यही उचित होगा कि एक उम्र के बच्चों को सीमित संख्या में ही अपने सेंटर में रखे जाने की सर्विस दे। इसमें उसे तय करना होगा कि किस उम्र के बच्चों को सेंटर में रखने में कम से कम खर्च आयेगा, उसी उम्र के बच्चों को परमीशन दो। शुरू शुरू में उसी उम्र के बच्चों को ही रखकर अपना काम शुरू करें। इसके बाद जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती चली जाये। अपने सेंटर का विस्तार करें। छोटे से सेंटर खोलने में एक लाख रुपये तक की लागत आती है। इसके अलावा बड़ा सेंटर खोलने में यदि हॉल और लॉन आदि आपका खुद का है तो लगभग 3 से 5 लाख रुपये की लागत आ सकती है।
मुनाफा कैसे और कितना मिलता है?
बेबी डे केयर सेंटर के बिजनेस में मुनाफा कैसे होता है। इस बिजनेस में पैंरेंट्स से स्कूलों जैसी फीस ली जाती है। यह सेंटर अपने यहां बच्चों को दो घंटे से लेकर 8 घंटें तक रखते हैं। समय के अनुसार बच्चों को दी जाने वाली तमाम सुविधाओं के अनुसार ही फीस ली जाती है। जानकार लोगों के अनुसार जो फीस ली जाती है, वह इस प्रकार है:-
- चार घंटे के लिए 5 हजार रुपये। इसमें आने-जाने का खर्च भी शामिल होता है। यह सेवा न लिये जाने पर 500 रुपये की कटौती की जाती है। इसमें नाश्ता, डायपर चेंजिंग का शुल्क भी शामिल होता है।
- आठ घंटे के लिए 10 हजार रुपये। इसमें बच्चों को दो समय का नाश्ता खाना। साफ सफाई आदि की सुविधा दी जाती है।
- इसके अलावा दो घंटे के लिए भी सेवा दी जाती है, उसके लिए दो से तीन हजार रुपये की फीस ली जाती है
इस फीस स्ट्रक्चर को खाने, नाश्ते, बिजली पानी,खर्च टूट-फूट रिपेयरिंग, वाहन खर्चा, किराया आदि निकाल कर जो बचता है वो सेंटर मालिक का मुनाफा बनता है। वैसे इस बिजनेस में कोई मुनाफा फिक्स नहीं बताया जा सकता है। यह सेंटर के चलने पर निर्भर करता है। फिर भी अनुमान लगाया जाता है कि इस बिजनेस में मालिक को सारे खर्चे निकालने के बाद 25 से 30 प्रतिशत की बचत होती है।
सेंटर खोलने के लिए कौन-कौन से लाइसेंस चाहिये?
सेंटर को दो तरह से खोला जा सकता है। पहले तरह के सेंटर अपने आप ही खोलना चाहिये। यदि सेंटर की लोकेशन रेजिडेंशियल एरिया में है तो आपको लोकल अथॉरिटी से सेंटर चलाने के लिए परमीशन लेनी होगी। इसके अलावा कोई ओर लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
दूसरी तरह आप किसी अच्छी कंपनी की फ्रेंचाइजी लेनी होगी। इसमें किसी तरह के लाइसेंस कीआवश्यकता नहीं होती है क्योंकि फ्रेंचाइजी लेने पर कंपनी द्वारा स्वयं आपके सेंटर की सारी आवश्यक कानूनी कार्यवाही से पूरी करके दी जाती है।
चाइल्ड केयर सेंटर की मार्केटिंग किस प्रकार से करें
चाइल्ड केयर सेंटर के बिजनेस की मार्केटिंग स्वयं भी कर सकते हैं तो बेहतर होगा अथवा किसी एक्सपर्ट मार्केटिंग टीम का सहारा ले सकतें हैं। वैसे जिस तरह से किसी स्कूल के लिए प्रचार करने जाते हैं, उसी तरह पहले आप उस एरिया में डोर टू डोर जाकर लोगों से सम्पर्क करें जहां पर इस तरह के बच्चों के मिलने की संभावना होती है उन्हें अपने सेंटर की जानकारी दें और अपने सेंटर की खूबियां बतायें।
दूसरा यह कि आप किसी बड़े सरकारी या प्राइवेट आफिस जायें । अपने साथ बिजिटंग कार्ड व पम्पलेट आदि प्रचार सामग्री लेकर जायें। वहां के उच्च अधिकारी या मध्यम दर्जे के अधिकारियों से भेंट कर उन्हें अपने सेंटर के बारे में सारी जानकारी दें।
इसके अलावा अपने सेंटर के होर्डिंग और बैनर लगवायें, सोशल मीडिया पर प्रचार करें। जरूरत पड़ने पर लोकल न्यूज पेपर, एफएम रेडियो और टेलिविजन चैनल पर विज्ञापन दें।
सेंटर चलाने के लिए कुछ अलग हट कर काम करें
- अपने सेंटर में कैमरे की सर्विस दें ताकि कोई पैरेंट्स चाहे तो वो समय-समय पर अपने बच्चे को मोबाइल के माध्यम से आसानी से देख सके।
- छोटे बच्चों की देखभाल करें और समय-समय पर जरूरी टीके वगैरह के बारे में पैरेंट्स को समय से पहले सूचित करें
- देखभाल करते समय पैरेंट्स को पूरी तरह का विश्वास दिलायें कि उनका बच्चा पूरी तरह से सुरक्षित है
- आपके द्वारा या आपके किसी कर्मचारी द्वारा कोई गलती हो जाये तो पहले आगे बढ़ कर माफी मांगे और पुन: भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराने की बात कहें
- बच्चों के नाश्ते व खाने के लिए किसी स्पेशलिस्ट से डाइट चार्ज बनवायें और उसे पैरेंट्स के साथ शेयर करें ताकि वो आपकी इस व्यवस्था से खुश हो सकें।
- पैरेंट्स को पेमेंट करने की सारी सुविधाएं दे, जैसे पे टीएम, इंटरनेट बैंकिंग, वालेट पेमेंट, कैश या किसी भी तरह से पेमेंट की सुविधा उपलब्ध करायें
- स्कूल जाने वाले बच्चों का होम वर्क करवा दें तो और बेहतर होगा, इससे पैरेंट्स काफी खुश होंगे
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